नेपाल की सियासत में बड़ा बदलाव, देश को पहली महिला प्रधानमंत्री
रिपोर्ट:-रांची डेस्क••••••
नेपाल की राजनीति में ऐतिहासिक मोड़ आया है। सुशीला कार्की नेपाल की पहली महिला प्रधानमंत्री बनी हैं। उन्होंने शुक्रवार को अकेले ही प्रधानमंत्री पद की शपथ ली। फिलहाल संसद भंग कर दी गई है और ईअगले छह महीनों के भीतर नए आम चुनाव कराने की घोषणा की गई है।
सुशीला कार्की का राजनीतिक सफर
सुशीला कार्की का जन्म नेपाल के एक साधारण परिवार में हुआ था।
उच्च शिक्षा उन्होंने भारत के बनारस हिंदू विश्वविद्यालय (बीएचयू) से हासिल की। इसी दौरान उन्हें जीवनसाथी भी मिला।
पेशे से वकील रहीं कार्की न्याय व्यवस्था और प्रशासनिक मामलों में अपनी सख्त छवि के लिए जानी जाती हैं।
कैबिनेट का स्वरूप
आज होने वाली कैबिनेट बैठक में विभिन्न दलों के नेता शामिल होंगे। सूत्रों के मुताबिक, इसमें चर्चित नेता घीसिंग समेत छह सदस्य शामिल किए जा सकते हैं। यह गठजोड़ इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि नेपाल की मौजूदा राजनीतिक स्थिति में स्थिरता लाना नई प्रधानमंत्री के लिए सबसे बड़ी चुनौती है।
दलों की सहमति क्यों बनी?
नेपाल में लंबे समय से अस्थिरता बनी हुई थी। राजनीतिक दलों के बीच तीखे मतभेद थे। राज्यशाही समर्थकों के सत्ता में आने की आशंका से प्रमुख दल सतर्क हो गए। इसी वजह से सभी दल सुशीला कार्की के नाम को एक “सहमति उम्मीदवार” के तौर पर सामने लाने पर राजी हुए।
भ्रष्टाचार जांच पर नया आयोग
प्रधानमंत्री कार्की ने शपथ के तुरंत बाद संकेत दिए कि उनकी सरकार भ्रष्टाचार पर सख्ती करेगी। इसके लिए एक स्वतंत्र भ्रष्टाचार जांच आयोग का गठन किया जाएगा। यह कदम अंतरराष्ट्रीय मंच पर नेपाल की छवि सुधारने के लिए अहम माना जा रहा है।
भारत के लिए नेपाल का महत्व
नेपाल की बदलती राजनीति भारत के लिए भी नजदीकी से जुड़ी है। दोनों देशों के बीच खुली सीमाएं, सांस्कृतिक और धार्मिक रिश्ते हैं। साथ ही नेपाल की राजनीतिक दिशा पर अमेरिका और चीन दोनों की नजरें हैं। भू-राजनीतिक दृष्टि से यह नई सरकार दक्षिण एशिया की रणनीतिक समीकरणों को प्रभावित कर सकती है।
आने वाले छह महीने अहम
संसद भंग होने और छह महीने में चुनाव तय होने से नेपाल एक बार फिर बड़े राजनीतिक संक्रमण से गुजर रहा है। कार्की की सरकार कितनी स्थिरता ला पाती है, यह नेपाल ही नहीं, बल्कि पड़ोसी देशों खासकर भारत के लिए भी देखने का विषय होगा।
