युवाओं का हो रहा है समय से पहले फेफड़ा खराब
रिपोर्ट:-रांची डेस्क••••••
युवाओं के फेफड़े तेजी से खराब हो रहे हैं, इसका मुख्य कारण वायु प्रदूषण और अस्वास्थ्यकर जीवनशैली है। विशेषज्ञों ने बताया है कि सुबह-सुबह धुएं में दौड़ना, ट्रैफिक जाम में फंसना, प्रदूषित कक्षाओं में पढ़ना, और जहरीली हवा में सांस लेना युवाओं के फेफड़ों को गंभीर नुकसान पहुंचा रहा है। यह एक अदृश्य बीमारी है जो अभी तो महसूस नहीं होती, लेकिन ये नुकसान तब उजागर होंगे जब युवा अपने जीवन के महत्वपूर्ण करियर दौर में होंगे। इस समस्या पर 2025 में दिल्ली में आयोजित रेस्पिकॉन कार्यक्रम में चर्चा हुई जिसमें बताया गया कि प्रदूषण की वजह से भारतीय युवाओं की औसत जीवन प्रत्याशा में लगभग 1000 दिन की कमी आ रही है। फेफड़ों के कैंसर, टीबी, सीओपीडी जैसी बीमारियां युवा वर्ग में तेजी से बढ़ रही हैं, जो पहले बुजुर्गों में अधिक देखने को मिलती थीं।
फेफड़ों की स्थिति और वायु प्रदूषण का प्रभाव

प्रदूषित हवा में सांस लेने से फेफड़ों की कार्यक्षमता कम हो जाती है और फेफड़ों के ऊतक प्रभावित होते हैं, जिससे गंभीर श्वसन रोग उत्पन्न होते हैं खासकर फाइन पार्टिकुलेट मैटर, रसोई का धुआं, बायोमास ईंधन से निकलने वाली गैसें, और पैसिव स्मोकिंग जैसे तत्व युवाओं के फेफड़ों पर बुरा असर डाल रहे हैं ट्रैफिक जाम में फंसे रहना, तेज दौड़ना और प्रदूषित वायुमंडल में लगातार रहना फेफड़ों की सेहत को कमजोर कर देता है।
युवाओं में फेफड़ों की बीमारियों के बढ़ते मामले
फेफड़ों के कैंसर, क्रोनिक ऑब्स्ट्रक्टिव पल्मोनरी डिजीज (COPD), टीबी और निमोनिया जैसी बीमारियों के मामले युवाओं में बढ़े हैं रिसर्च से पता चला है कि हर साल लगभग 81,700 नए फेफड़ों के कैंसर के मामले सामने आते हैं, जिनमें ज्यादातर प्रदूषण वाले क्षेत्रों के युवा शामिल हैं ये स्वास्थ्य समस्याएं धीरे-धीरे युवाओं के जीवन का करियर और भविष्य प्रभावित करेंगी।
विशेषज्ञों की सलाह और आगे की दिशा
विशेषज्ञों का मानना है कि फाइन पार्टिकुलेट प्रदूषण को कम करना और COPD, अस्थमा, टीबी जैसे रोगों के इलाज के दिशा-निर्देशों का पालन करना आवश्यक है।स्वच्छ वायु, पर्यावरण संरक्षण, और स्वस्थ जीवनशैली को अपनाकर युवाओं को इस चुनौती से बचाया जा सकता है।जागरूकता अभियान, तेजी से इलाज उपलब्ध कराना और प्रदूषण नियंत्रण के लिए सरकार और समाज को मिलकर काम करना होगा।
जल्द चाहिए समाधान
इन तथ्यों को देखते हुए यह स्पष्ट है कि युवाओं के फेफड़ों की बिगड़ती स्थिति राष्ट्रीय स्तर पर एक बड़ा स्वास्थ्य संकट बनती जा रही है, जिसका समाधान तत्काल चाहिए, ताकि एक स्वस्थ और सक्षम पीढ़ी देश का भविष्य संवार सके।
