शेरघाटी को जिला बनाने की मांग पर फिर उभरा जनाक्रोश  
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शेरघाटी को जिला बनाने की मांग पर फिर उभरा जनाक्रोश  

रिपोर्ट:-रांची डेस्क••••••

वोट के समय आश्वासन, सत्ता में आने के बाद खामोशी

बिहार:-शेरघाटी,लंबे समय से शेरघाटी को जिला बनाए जाने की मांग एक बार फिर राजनीतिक गलियारों में गूंज उठी है। यहां के लोगों का कहना है कि हर चुनाव के समय नेतागण आते हैं, जनता से वोट मांगते हैं और जिला बनाने का वादा कर चले जाते हैं, लेकिन सत्ता में आने के बाद उस वादे का कहीं कोई जिक्र नहीं रह जाता।  

 

स्थानीय लोगों ने बताया कि *जिला बनाओ संघर्ष समिति* वर्षों से आंदोलन कर रही है। कई बार मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से भी इस मुद्दे पर बात हो चुकी है। विभिन्न जनसभाओं और इलेक्शन कैंपेन के दौरान उन्होंने इसे गंभीरता से देखने और शेरघाटी को जिला बनाने का भरोसा दिलाया था, मगर चुनाव जीतने के बाद यह मुद्दा ठंडे बस्ते में डाल दिया गया।  

विशाल क्षेत्र और प्रशासनिक जरूरतें  

जनता का कहना है कि शेरघाटी को जिला बनाने की मांग केवल भावनात्मक नहीं, बल्कि पूरी तरह तर्कसंगत और प्रशासनिक दृष्टि से आवश्यक है।  

फिलहाल यहां 9 प्रखंड और 17 थाने आते हैं। शेरघाटी का क्षेत्रफल बहुत बड़ा है और यह इलाके की आबादी के लिहाज़ से भी प्रशासनिक निगरानी के लिए चुनौतीपूर्ण हो चुका है। यह इलाका झारखंड राज्य की सीमा से सटा हुआ है और कई बार सीमावर्ती सुरक्षा व विकास कार्यों में कठिनाई आती है। जीटी रोड (वाराणसी से कोलकाता मार्ग) पर होने के कारण यह क्षेत्र वाणिज्य और यातायात की दृष्टि से भी अत्यंत महत्वपूर्ण है।  

लोगों का कहना है कि इन तमाम कारणों से शेरघाटी का अलग जिला बनना न सिर्फ़ स्थानीय जनता के लिए सुविधा की बात होगी, बल्कि सुरक्षा और विकास दोनों के लिहाज़ से भी ज़रूरी है।  

वादों की लंबी कतारें 

स्थानीय नागरिक याद दिलाते हैं कि पूर्व में कई नेताओं ने, खुद नितीश कुमार, चिराग पसवान ,जीतन राम मांझी एवं मंजू अग्रवाल का नाम भी है, जिला बनाने की लड़ाई लड़ने का वादा किया था। उन्होंने चुनाव प्रचार के दौरान कहा था कि सत्ता में आने पर इस मुद्दे को प्रमुखता देंगी। मगर जनता का आरोप है कि वे भी विपक्ष मे होते हुए भी खामोश हो गईं और आन्दोलन अकेले जनता के भरोसे रह गया।  

जिला बनाए जाने के लिए क्या-क्या अनिवार्य होना चाहिए?  

विशेषज्ञों और प्रशासनिक सूत्रों के अनुसार, किसी भी क्षेत्र को जिला बनाने के लिए निम्न शर्तें और तैयारियां पूरी होनी चाहिए जनसंख्या का पर्याप्त घनत्व और इलाके का बड़ा भौगोलिक क्षेत्रफल। पुलिस, न्यायालय और प्रशासनिक भवनों के लिए उचित इंफ्रास्ट्रक्चर।राजस्व और आर्थिक संसाधन जिससे जिला स्तर पर कार्यालयों के संचालन का खर्च उठाया जा सके। सड़क, स्वास्थ्य और शिक्षा की न्यूनतम सुविधाएं ताकि जिला मुख्यालय बनने के बाद जनसेवाएं सुचारु रूप से चल सकें। फिलहाल शेरघाटी में कुछ सुविधाएं मौजूद हैं, लेकिन स्वतंत्र जिला स्तर की बुनियादी ढांचा और स्पष्ट सरकारी पहल का अभाव सबसे बड़ी बाधा है।  

जनता की आवाज़  

संघर्ष समिति के सदस्यों का कहना है कि अगर सरकार अब भी उदासीन रही तो वे आंदोलन को और तेज़ करेंगे। उनका मानना है कि “जब तक शेरघाटी को जिला का दर्जा नहीं मिलता, तब तक यहां की समस्याओं का स्थायी समाधान संभव नहीं है।”  

मौका-ए-वारदात पर मौजूद ग्रामीणों ने कहा कि नेताओं का एक ही काम है, “चुनाव आए तो जिला बनाने का वादा, चुनाव खत्म हुआ तो खामोशी।” लोगों ने साफ शब्दों में कहा है कि आने वाले चुनावों में जनता अब केवल वही नेता चुनेंगे जो इस संवेदनशील मुद्दे का ठोस हल देंगे

 

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