माओवादी ने किया सरेंडर मुख्य सरगना को बड़ा झटका
रिपोर्ट:रांची डेस्क
हैदराबाद में मंगलवार को प्रतिबंधित भाकपा (माओवादी) संगठन को उस समय बड़ा झटका लगा, जब उसके दो वरिष्ठ नेता केंद्रीय समिति सदस्य पुल्लुरी प्रसाद राव उर्फ ‘चंद्रन्ना’ और तेलंगाना राज्य समिति के बंडी प्रकाश उर्फ ‘प्रभात’ने पुलिस के समक्ष आत्मसमर्पण कर दिया। इन दोनों नेताओं ने दशकों तक भूमिगत जीवन जीने के बाद अब मुख्यधारा में शामिल होने का फैसला किया है
आत्मसमर्पण की खबरें
तेलंगाना पुलिस मुख्यालय में आयोजित समारोह के दौरान डीजीपी बी. शिवाधार रेड्डी की उपस्थिति में चंद्रन्ना (64 वर्ष) और प्रभात (55 वर्ष) ने हथियार डाल दिए। चंद्रन्ना पर अलग-अलग राज्यों में कुल मिलाकर एक करोड़ रुपए से अधिक का इनाम घोषित था, जबकि प्रभात पर 25-50 लाख रुपए का इनाम था
आत्मसमर्पण के प्रमुख कारण
पुलिस अधिकारियों के अनुसार, दोनों नेताओं ने संगठन छोड़ने के पीछे कई वजहें बताईं:
– बिगड़ती स्वास्थ्य स्थिति और बढ़ती उम्र
– पुलिस और सुरक्षा बलों का लगातार दबाव
– सीपीआई (माओवादी) संगठन में वैचारिक मतभेद और आंतरिक कलह
इन नेताओं ने यह भी कहा कि संगठन का वैचारिक आधार, लगातार बढ़ती पुलिस कार्रवाई और नेतृत्व में कई स्तरों पर मतभेद के कारण अब बिखर चुका है
इनकी पृष्ठभूमि और भूमिका
चंद्रन्न मूल रूप से तेलंगाना के पेद्दापल्ली जिले के रहने वाले हैं। वर्ष 1979 में इंटरमीडिएट के दौरान रेडिकल स्टूडेंट्स यूनियन से जुड़े और 45 साल तक भूमिगत जीवन जीया। माओवादी संगठन के प्रमुख रणनीतिकारों में शामिल रहे और किशनजी जैसे बड़े नेताओं के साथ काम किया
-प्रभात मंचेरियल जिले के रहने वाले हैं। 1983 में माओवादी संगठन से जुड़े। वे हाल ही में तेलंगाना राज्य समिति की प्रेस टीम के प्रभारी थे और प्रजाविमुक्ति पत्रिका के संपादक भी रहे
तेलंगाना सरकार की पहल
मुख्यमंत्री ए. रेवंत रेड्डी द्वारा दिए गए “मुख्यधारा में लौटने और राज्य के विकास में भाग लेने” की अपील के बाद यह आत्मसमर्पण हुआ। राज्य सरकार की पुनर्वास नीति और केंद्र सरकार के नक्सल विरोधी अभियानों को इस सफलता का मुख्य कारण माना जा रहा है[2][6]।
ताजा रुझान और विश्लेषण
बीते दो हफ्तों में 300 से अधिक माओवादी मुख्यधारा में लौट चुके हैं, जिनमें कई बड़े नाम शामिल हैं।
सुरक्षा विशेषज्ञों का मानना है कि बसवा राजू की मौत और बड़े नामों के आत्मसमर्पण के बाद संगठन कमजोर हो गया है, जिससे लगातार माओवादी कैडर का पलायन हो रहा है
सरेंडर का असर
इस आत्मसमर्पण को माओवादी संगठन के लिए बड़ा झटका और पुलिस-सुरक्षा बलों के लिए नैतिक जीत माना जा रहा है। इसके चलते आने वाले समय में माओवादी गतिविधियों में और गिरावट आने की संभावना जताई जा रही है
