फर्जी नक्सली सिलेंडर मामले की सुनवाई आज रांची हाईकोर्ट मैं हई
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फर्जी नक्सली सिलेंडर मामले की सुनवाई आज रांची हाईकोर्ट मैं हई

रिपोर्ट:-रची डेस्क••••••

रांची: झारखंड में फर्जी नक्सली सिलेंडर मामले की सुनवाई झारखंड हाई कोर्ट में हुई, जिसमें 514 आदिवासी युवाओं को फर्जी तरीके से नक्सली बताकर सरेंडर करवाने के मामले की जांच कराने की मांग की गई है। यह सुनवाई चीफ जस्टिस तरलोक सिंह चौहान की अध्यक्षता वाली खंडपीठ में हुई। राज्य सरकार ने इस मामले में स्टेटस रिपोर्ट दाखिल करने के लिए समय मांगा, जिसे कोर्ट ने स्वीकार कर लिया है और रिपोर्ट दाखिल करने का निर्देश दिया है। अगली सुनवाई नवंबर माह में होगी।

पुलिस भी शामिल है इस मामले में

यह मामला 2014 का है जब रांची के दिग्दर्शन संस्थान के जरिए 514 आदिवासी युवाओं को नक्सली बताकर उनके फर्जी सरेंडर कराने का आरोप लगा। जांच में पाया गया कि इनमें से केवल कुछ ही युवकों का नक्सली गतिविधियों से कोई संबंध था। आरोप है कि पुलिस और प्रशासन के कुछ अधिकारी भी इस पूरे मामले में शामिल थे। युवाओं को नौकरी और आर्थिक मदद के लालच में फर्जी तरीके से सरेंडर कराया गया था। मानवाधिकार आयोग ने भी पुलिस अधिकारियों को दोषी पाया था कि उन्होंने सरेंडर किए गए युवाओं को कोर्ट में पेश तक नहीं किया। 

मामले की अगली सुनवाई 25 नवंबर को

हालांकि पुलिस ने जांच पूरी कर रिपोर्ट सौंपी, लेकिन जांच को फर्जीवाड़े तक सीमित रखने का आरोप भी लगा। इस प्रकरण में बड़ी प्रशासनिक हलचलों के बावजूद उचित कार्रवाई नहीं हो पाई है। इस विषय में झारखंड काउंसिल फॉर डेमोक्रेटिक राइट्स ने जनहित याचिका दाखिल की थी, जो वर्तमान में अदालत में विचाराधीन है। यह सुनवाई एक महत्वपूर्ण कदम है जहां कोर्ट ने राज्य सरकार को इस मामले पर रिपोर्ट प्रस्तुत करने का निर्देश दिया है और विधानसभा तथा मानवाधिकार के नजरिये से निष्पक्ष जांच की मांग की है। मामले की अगली सुनवाई नवंबर 2025 में होने वाली है, जिसमें सरकार की स्टेटस रिपोर्ट पर गौर किया जाएगा।

 गम्भीर है हाई कोर्ट का रुख

इस मामले का सामाजिक और कानूनी महत्व इसलिए भी है क्योंकि यह आदिवासी युवाओं के अधिकारों की रक्षा और नक्सली सरेंडर नीति की पारदर्शिता पर बड़ा सवाल खड़ा करता है। झारखंड में नक्सल प्रभावित इलाकों में ऐसी फर्जी कार्रवाइयों का असर सामाजिक न्याय और सुरक्षा व्यवस्था पर गहरा पड़ता है।

इस संदर्भ में झारखंड हाई कोर्ट का रूख इस बात का संकेत है कि वह इस मामले को गंभीरता से ले रही है और उचित न्याय सुनिश्चित करने के लिए सतत निगरानी कर रही है। 

 

 

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