कुर्मी-कुड़मी समुदाय की आदिवासी दर्जे की मांग पर बवाल, बाबूलाल मरांडी ने दी संवैधानिक सलाह
रिपोर्ट:-रांची डेस्क••••••
रांची, झारखंड।राज्य में एक बार फिर जातिगत आरक्षण और पहचान को लेकर विवाद तेज हो गया है। कुर्मी व कुड़मी महतो समुदाय के लोग पिछले कई दिनों से खुद को आदिवासी श्रेणी में शामिल करने की मांग को लेकर सड़कों पर उतर रहे हैं। रैली, धरना और विरोध प्रदर्शन के माध्यम से समुदाय अपने हक में आवाज बुलंद कर रहा है। वहीं दूसरी ओर झारखंड के मूल आदिवासी समाज ने इन आंदोलनों का कड़ा विरोध जताते हुए कहा है कि यह उनकी अस्मिता और आरक्षण अधिकारों पर प्रहार है।
बाबूलाल मरांडी का बयान
नेता प्रतिपक्ष और झारखंड भाजपा प्रदेश अध्यक्ष बाबूलाल मरांडी से जब इस आंदोलन को लेकर सवाल पूछा गया, तो उन्होंने लोकतांत्रिक दायरे की बात दोहराई। मरांडी ने कहा डेमोक्रेसी में हर किसी को अपने हक के लिए आंदोलन करने का अधिकार है, लेकिन वह आंदोलन संविधान की मर्यादा में रहकर होना चाहिए।
उन्होंने आगे कहा कि संविधान में स्पष्ट प्रक्रिया निर्धारित की गई है कि किस जाति को किस सूची में शामिल किया जा सकता है। यह निर्णय केंद्र और राज्य सरकारों की संयुक्त प्रक्रिया के तहत ही लिया जाता है, और कोई भी समुदाय बिना इस संवैधानिक ढांचे के बाहर जाकर आदिवासी सूची में शामिल नहीं किया जा सकता।
मरांडी ने कहा कि भाजपा का स्पष्ट मत है कि कोई भी आंदोलन संविधान विरोधी नहीं होना चाहिए उन्होंने यह भी जोड़ा कि जातियों के वर्गीकरण से जुड़े विषयों पर निर्णय तथ्यों, ऐतिहासिक साक्ष्यों और विधिक प्रक्रिया के अनुरूप होने चाहिए, न कि भावनात्मक दबाव में।
आदिवासी संगठनों में नाराजगी
राज्य के कई आदिवासी संगठनों ने कुर्मी-कुड़मी समाज की इस मांग को अनुचित बताया है। उनका कहना है कि यह प्रयास वास्तविक आदिवासी समुदायों की पहचान को कमजोर करने वाला है। कई स्थानों पर विरोध प्रदर्शन हुए हैं और आदिवासी संगठनों ने सरकार से मांग की है कि वह इस मामले पर स्पष्ट रुख अपनाए और किसी भी गलत परंपरा की शुरुआत न होने दे।
सरकार की स्थिति
राज्य सरकार ने अब तक इस विवाद पर औपचारिक बयान नहीं दिया है, लेकिन सूत्रों के मुताबिक प्रशासनिक स्तर पर दोनों पक्षों की रिपोर्ट और जनगणना संबंधी आंकड़ों का अध्ययन किया जा रहा है। केंद्र सरकार से इस विषय पर परामर्श करने की भी संभावना जताई जा रही है।
यह मुद्दा हमेशा विवाद का कारण बनता हैं
गौरतलब है कि झारखंड में कुर्मी-कुड़मी समुदाय लंबे समय से खुद को मूल निवासी और आदिवासी वंशज बताते हुए आदिवासी सूची में शामिल करने की मांग कर रहा है। यह मुद्दा समय-समय पर उठता रहा है, लेकिन प्रत्येक बार विवाद का कारण बनता है, क्योंकि यह सीधे तौर पर आरक्षण और सामाजिक पहचान से जुड़ा मामला है।
राज्य के राजनीतिक हलकों में यह विषय आने वाले दिनों में और गर्माने की संभावना है, क्योंकि कई संगठन अपनी-अपनी विचारधाराओं के साथ नीति-निर्माण पर दबाव डालने की तैयारी में हैं।
