हजारीबाग की सुरक्षा व्यवस्था पर संकट सीसीटीवी कैमरे बने शोपीस, अपराधी बेकाबू
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हजारीबाग की सुरक्षा व्यवस्था पर संकट सीसीटीवी कैमरे बने शोपीस, अपराधी बेकाबू

 

रिपोर्ट:-रांची डेस्क••••••

हजारीबाग शहर में सात साल पहले अपराध पर लगाम लगाने और चौकस निगरानी के लिए आधुनिक सीसीटीवी कैमरों का जाल बिछाया गया था। विधायक निधि और बीएसएनएल की तकनीकी मदद से लगभग 270 कैमरे लगाए गए। योजना यह थी कि सार्वजनिक स्थानों पर निरंतर निगरानी रहे और अपराधियों की पहचान मिनटों में की जा सके। परंतु, समय के साथ यह व्यवस्था ध्वस्त हो गई।

वर्तमान हालात

270 कैमरों में से मात्र 10 ही काम कर रहे हैं 260 से अधिक कैमरे तकनीकी खराबी और रखरखाव न होने की वजह से बंद पड़े हैं। त्योहारों के मौसम में बाजारों और मंदिरों के बाहर भीड़ बढ़ रही है, लेकिन वहां निगरानी के साधन लगभग शून्य हैं।हाल के दिनों में दिनदहाड़े चोरी और चेन स्नैचिंग की कई घटनाएं हुईं, जिनका फुटेज पुलिस को निजी दुकानों और प्रतिष्ठानों के कैमरों से जुटाना पड़ा।

प्रशासन की भूमिका और लापरवाही

करोड़ों रुपए की लागत से लगाए गए कैमरों की नियमित देखभाल के लिए न कोई ठोस व्यवस्था की गई और न ही रखरखाव का बजट तय हुआ। इसके बाद 500 नए कैमरे लगाने की योजना बनाई गई थी, लेकिन विभागीय टालमटोल और फाइलों में उलझाव के कारण आज तक कार्यान्वयन नहीं हुआ।

पुलिस प्रशासन का दावा है कि अगले 2–3 महीनों में तकनीकी समस्या को दूर कर नेटवर्क को पूरी तरह से दुरुस्त कर दिया जाएगा, लेकिन मौजूदा हालात को देखते हुए यह आश्वासन आम जनता के लिए सिर्फ सांत्वना जैसा साबित हो रहा है।

जनता की परेशानी और डर

महिलाएं और बुजुर्ग सबसे ज्यादा असुरक्षित महसूस कर रहे हैं।व्यापारियों और दुकानदारों का कहना है कि प्रशासनिक लापरवाही से उनकी दुकानें और ग्राहक दोनों ही खतरे में हैं।त्योहारों के मौसम में बाजारों में भीड़भाड़ बढ़ने से जेबकतरे और स्नैचिंग करने वाले अपराधियों को खुला मैदान मिल गया है।

विशेषज्ञों की राय

सुरक्षा विशेषज्ञों का मानना है कि सीसीटीवी कैमरे महज उपकरण नहीं, बल्कि शहर की सुरक्षा की तीसरी आँख हैं। इनकी अनुपस्थिति अपराधियों को बेखौफ करती है और पुलिस की पड़ताल को कमजोर। ऐसे में, जब निगरानी बंद हो, तो अपराध का बढ़ना लगभग तय है।

सवाल और चुनौतियां

जब अपराध हर दिन बढ़ रहे हैं, तो क्या शहर को दो–तीन महीने तक अपराधियों के भरोसे छोड़ देना जायज़ है?रखरखाव और निगरानी के नाम पर जो धन खर्च हुआ, उसका हिसाब कौन देगा, नई परियोजनाएं क्यों अधर में लटकी हुई हैं और जिम्मेदार अधिकारियों पर कार्रवाई क्यों नहीं होती? क्या जनता को सुरक्षित माहौल देने का वादा सिर्फ कागज़ों और भाषणों तक ही सीमित रह गया है?

क्या करना होगा प्रषासन को

हजारीबाग में सीसीटीवी कैमरों का बंद होना पुलिस और प्रशासनिक जिम्मेदारी की बड़ी नाकामी है। त्योहारों के मौसम में भी यदि निगरानी नहीं बढ़ाई गई, तो अपराधों की संख्या और बढ़ने की आशंका है। फिलहाल जरूरत है कि प्रशासन तात्कालिक प्रभाव से कैमरों को दुरुस्त करे और जनता को भरोसा दिलाए कि उनकी सुरक्षा केवल घोषणाओं पर नहीं, बल्कि ठोस कार्यवाही पर टिकी है

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