मुख्यमंत्री की अध्यक्षता में कैबिनेट बैठक  
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मुख्यमंत्री की अध्यक्षता में कैबिनेट बैठक  

  रिपोर्ट:-रांची डेस्क••••••

बुधवार को हुई इस बैठक में कई महत्वपूर्ण नीतिगत फैसलों पर चर्चा की गई। मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने बताया कि सुप्रीम कोर्ट ने 8 अक्टूबर तक राज्य सरकार को

सारंडा जंगल को वाइल्डलाइफ सेंचुरी बनाने की दिशा में ठोस कदम उठाने का निर्देश दिया है। सरकार इसको गंभीरता से ले रही है और व्यापक रणनीति तैयार कर रही है।  

 पांच मंत्रियों की समिति गठित

इस फैसले को अमल में लाने और उसके असर का जायजा लेने के लिए वित्त मंत्री राधा कृष्ण किशोर के नेतृत्व में कुल पांच मंत्रियों की एक उच्चस्तरीय समिति बनाई गई है। यह समिति जल्द ही सारंडा का दौरा करेगी और वहां की जमीनी हकीकत का मूल्यांकन करेगी। टीम इस बात का आकलन करेगी कि वाइल्डलाइफ सेंचुरी घोषित किए जाने के बाद क्षेत्र के पर्यावरण, वन्य जीवों और स्थानीय ग्राम सभाओं पर क्या प्रभाव पड़ेगा।  

सारंडा जंगल क्यों है खास?  

– सारंडा एशिया का सबसे बड़ा सल वन क्षेत्र माना जाता है।  

– इस जंगल में हाथी, तेंदुआ, हिरण, भालू समेत कई दुर्लभ प्रजातियों के वन्य जीव पाए जाते हैं।  

– यह इलाका प्राकृतिक खनिज संपदा से भी भरपूर है, खासकर लौह अयस्क की खदानें यहां व्यापक रूप से मौजूद हैं।  

स्थानीय समाज और सरकार के सामने चुनौती  

सुप्रीम कोर्ट ने हाल के निर्णय में स्पष्ट किया है कि राज्य सरकार को यहां की जैव विविधता और वन्य जीवन की सुरक्षा प्राथमिकता देनी होगी। लेकिन दूसरी ओर यहां रहने वाले आदिवासी समुदायों की आजीविका और खनन कंपनियों की सक्रियता भी बड़ा मुद्दा बनी हुई है। ऐसे में सरकार के लिए सबसे बड़ी चुनौती होगी 

– क्या वन संरक्षण और खनन गतिविधियों में संतुलन बनाया जा सकता है?  

– आदिवासी समुदायों के अधिकार और आजीविका को किस तरह से सुरक्षित किया जाएगा?  

– पर्यावरणीय दृष्टिकोण से क्या नई नीतियां बनाई जाएंगी?  

 सुप्रीम कोर्ट का कड़ा रुख  

सुप्रीम कोर्ट ने झारखंड सरकार को साफ निर्देश दिया है कि 8 अक्टूबर तक सारंडा को वाइल्ड लाइफ सेंचुरी घोषित करने की अधिसूचना जारी की जाए। कोर्ट ने कहा है कि इस संबंध में कोई भी देरी बर्दाश्त नहीं की जाएगी।  

क्या होगा निर्णय 

अब सबकी निगाहें पांच मंत्रियों की इस समिति पर टिकी हैं, जिनकी रिपोर्ट के आधार पर राज्य सरकार अपना अंतिम निर्णय लेगी। पर्यावरण प्रेमी और समाजसेवी संगठनों ने इस कदम का स्वागत किया है, वहीं स्थानीय खनन उद्योग और ग्राम सभाएँ संभावित असर को देखते हुए सजग हैं

 

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