जल संचयन अपनाओ, जल संकट मिटाओ।
रिपोर्ट:- राँची डेस्क……
वर्षा जल संचयन :
वर्षा जल संचयन एक पारंपरिक और वैज्ञानिक विधि है, जिसमें वर्षा के समय गिरने वाले जल को एकत्र कर के उसे भविष्य में उपयोग के लिए संग्रहित किया जाता है। इस जल को भूमिगत जल के पुनर्भरण, घरेलू उपयोग, सिंचाई, या औद्योगिक कार्यों में प्रयोग किया जा सकता है। यह जल संरक्षण की एक पारंपरिक और पर्यावरण के अनुकूल विधि है।
झारखंड में जल संचय
झारखंड, जो अपनी खनिज संपदा, हरियाली और पर्वतीय इलाकों के लिए प्रसिद्ध है, वहां की जलवायु और भूजल स्तर में भी कई चुनौतियाँ हैं। भूजल का अत्यधिक उपयोग, सूखा, और घटते जलाशय इस राज्य के लिए एक बड़ी समस्या बन चुके हैं। जल प्रबंधन और पुनर्भरण की उचित नीति और उपायों के बिना, भूजल स्तर में गिरावट जारी रह सकती है। इस लेख में हम झारखंड में भूजल स्तर की स्थिति, इसके कारण, समस्याएँ और समाधान पर चर्चा करेंगे।
झारखंड में भूजल स्तर की वर्तमान स्थिति:
झारखंड में भूजल स्तर में समय-समय पर उतार-चढ़ाव देखा जाता है। मुख्य रूप से दो समयसीमा होती है, जिसमें भूजल स्तर की माप की जाती है:
1.प्रे-मॉनसून (मई माह): वर्षा से पहले, भूजल स्तर काफी नीचे चला जाता है क्योंकि वर्षा का पानी नहीं होता और जल की खपत अधिक होती है।
2.पोस्ट-मॉनसून (नवंबर माह): मानसून के बाद, भूजल स्तर में सुधार होता है क्योंकि वर्षा का पानी भूमि में समाहित हो जाता है और जल स्रोत पुनः चार्ज होते हैं।
झारखंड के कुछ इलाकों में भूजल स्तर में गिरावट भी देखी जाती सकती है, खासकर शहरी और औद्योगिक इलाकों में।
झारखंड के विभिन्न जिलों में भूजल स्तर:
1.रांची: रांची में भूजल स्तर की गहराई प्रे-मॉनसून में 15 से 25 मीटर के बीच होती है। मानसून के बाद यह 10 से 20 मीटर तक आ जाता है, हालांकि यहां भी औद्योगिकीकरण और शहरीकरण की वजह से जल स्तर में गिरावट हो रही है।
2.धनबाद और बोकारो: धनबाद और बोकारो जैसे औद्योगिक क्षेत्रों में भूजल स्तर 20 से 35 मीटर के बीच पाया जाता है। इन क्षेत्रों में खनन कार्य के कारण जल का अत्यधिक उपयोग हो रहा है और इससे भूजल स्तर में गिरावट आई है।
3.ग्रामिण क्षेत्र: झारखंड के ग्रामीण क्षेत्रों में भूजल स्तर 10 से 30 मीटर के बीच हो सकता है। हालांकि, इन क्षेत्रों में कृषि आधारित जल उपयोग अधिक होने के कारण जल स्तर पर दबाव रहता है।
4.झारखंड के पठारी और जंगल वाले क्षेत्र: क्षेत्र जैसे गढ़वा, लोहरदगा, और साहिबगंज में जल पुनर्भरण की क्षमता अच्छी है। यहाँ पर भूमि में जल का समाहित होने की प्रक्रिया अच्छी होती है, लेकिन फिर भी जल स्तर में उतार-चढ़ाव देखा जाता है।
वर्षा जल संचयन के उद्देश्य:
1.वर्षा जल को व्यर्थ बहने से रोकना।
2.जल संकट की समस्या को कम करना।
3.भूमिगत जल स्तर को बढ़ाना।
4.पेयजल का वैकल्पिक स्रोत तैयार करना।
5.पर्यावरण की रक्षा करना।
6.स्वच्छ और निःशुल्क जल स्रोत तैयार करना।
वर्षा जल संचयन के तरीके:
1. छत आधारित वर्षा जल संचयन प्रणाली (Rooftop Rainwater Harvesting) : यह सबसे सामान्य और प्रभावी तरीका है। इसमें घर, विद्यालय, कार्यालय या किसी भी भवन की छत पर गिरने वाला वर्षा जल पाइपों के माध्यम से फिल्टर होकर एक संग्रहण टैंक या भूमिगत गड्ढे में जमा किया जाता है।
प्रक्रिया:
वर्षा जल छत पर गिरता है। फिर यह नालियों (पाइपों) से होते हुए नीचे आता है। पहले “फर्स्ट फ्लश डिवर्टर” गंदा पानी बाहर निकालता है, फिर पानी फिल्टर से होकर संग्रहण टैंक या रिचार्ज सिस्टम में जाता है।
उपयोग:
•घरेलू कार्य (साफ़-सफ़ाई, बागवानी, शौचालय)
•पीने योग्य (फिल्टरिंग व उबालने के बाद)
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2. भूमिगत जल पुनर्भरण प्रणाली (Groundwater Recharge System): इस विधि में वर्षा जल को जमीन में सोखने देकर भूजल स्तर को बढ़ाया जाता है। यह शहरी और ग्रामीण दोनों क्षेत्रों में उपयोगी है, खासकर वहाँ जहाँ भूमिगत जल स्तर गिर रहा हो।
प्रक्रिया:
•सोख्ता गड्ढा (Soak Pit) – छोटे गड्ढों में पानी जमा कर उसे धीरे-धीरे जमीन में सोखने दिया जाता है।
•पर्कोलेशन पिट (Percolation Pit) – बड़े गड्ढे जिनमें बजरी, रेत, और कोयला भरा होता है ताकि पानी फिल्टर होकर नीचे जाए।
•रिचार्ज कुआँ (Recharge Well) – सूखे कुएँ में वर्षा जल डाला जाता है ताकि वह सीधे भूजल तक पहुँचे।
•बोरवेल रिचार्ज (Borewell Recharge) – बोरवेल को विशेष फिल्टर से जोड़कर वर्षा जल भूजल में डाला जाता है।
लाभ:
•भूजल स्तर में वृद्धि
•जल स्रोतों की पुनः भरपाई
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3. सतही जल संचयन (Surface Runoff Harvesting):
जब वर्षा जल ज़मीन पर बहता है (जैसे सड़क, पार्क, खेत आदि पर), तब उसे रोककर संग्रह किया जाता है। यह जल खेतों में सिंचाई या गांव के तालाबों में संग्रह के लिए उपयोगी होता है।
तरीके:
•चेक डैम (Check Dam) बनाकर बहते पानी को रोका जाता है।
•खेतों के किनारे मेड़ बनाकर जल को रोकते हैं।
•छोटे-छोटे तालाबों में जल संग्रह कर लिया जाता है।
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4. कृत्रिम जलाशय (Artificial Reservoirs/Ponds):
जहाँ प्राकृतिक जलाशय उपलब्ध नहीं होते, वहाँ मिट्टी या कंक्रीट से जलाशय (तालाब, टैंक) बनाकर वर्षा जल संग्रह किया जाता है।
विशेषता:
•जल को लंबे समय तक संग्रहित किया जा सकता है।
•कृषि और पशुपालन में सहायक।
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5. झीलों/तालाबों का पुनर्भरण (Lake or Pond Recharge)
विवरण:
प्राकृतिक झीलों या पुराने तालाबों में बहते वर्षा जल को डाइवर्ट कर के डाला जाता है, जिससे उनका जलस्तर बढ़े और आसपास का भूजल भी रिचार्ज हो।
लाभ:
•पारंपरिक जल स्रोतों का संरक्षण
•वर्षा जल व्यर्थ न जाकर उपयोगी बनता है
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6. परंपरागत प्रणालियाँ (Traditional Rainwater Harvesting Systems)
भारत के कुछ उदाहरण:
•बावड़ी (Stepwells) – राजस्थान और गुजरात में प्राचीन काल से उपयोग होती आ रही है।
•तालाब/कुंड – गाँवों में बनते हैं जो वर्षा जल को इकट्ठा करते हैं।
•जोहड़ और नाड़ी – हरियाणा और राजस्थान में छोटे जलाशय के रूप में।
विशेषताएँ:
•पारंपरिक ज्ञान पर आधारित
•स्थानीय जलवायु के अनुसार अनुकूल
वर्षा जल संचयन के ये सभी तरीके – चाहे छत से हो या जमीन से – जल संकट को दूर करने, पर्यावरण की रक्षा करने और आत्मनिर्भरता बढ़ाने के लिए अत्यंत आवश्यक हैं। सही योजना, निर्माण और रख-रखाव से ये प्रणालियाँ लंबे समय तक उपयोगी रहती हैं।
वर्षा जल का उपयोग:
•पीने और खाना बनाने (शुद्धिकरण के बाद)
•शौचालय फ्लशिंग
•कपड़े धोने
•बागवानी और पौधों की सिंचाई
•पशुपालन
•कृषि कार्य
•औद्योगिक उपयोग
वर्षा जल संचयन के लाभ:
1.जल संरक्षण: यह जल की बर्बादी को रोकता है।
2.भूजल स्तर बढ़ता है: जल भूमि में रिसकर नीचे के जल स्तर को रिचार्ज करता है।
3.बाढ़ और कटाव कम होता है: अधिक पानी बहकर बाढ़ या मिट्टी का कटाव नहीं करता।
4.स्वच्छ जल की उपलब्धता: सही तरीके से संग्रहित और शुद्ध किया गया जल स्वास्थ्य के लिए अच्छा होता है।
5.खर्च की बचत: पानी का बिल कम आता है, विशेषकर शहरों में।
वर्षा जल संचयन की चुनौतियाँ:
•प्रारंभिक लागत अधिक हो सकती है।
•नियमित सफाई और रख-रखाव आवश्यक है।
•यदि सही तरीके से न किया जाए, तो जल दूषित हो सकता है।
•जन जागरूकता की कमी।
वर्षा जल संचयन को अपनाने के कुछ सुझाव:
•छतों पर जल रुकने से रोकें और नियमित सफाई करें।
•फर्स्ट फ्लश सिस्टम लगाएं ताकि शुरुआती गंदा पानी बाहर निकल जाए।
•फिल्टर का उपयोग करें ताकि टैंक में साफ पानी पहुँचे।
•स्थानीय निकाय या सरकार द्वारा दिए गए प्रोत्साहनों की जानकारी लें।