छठ महापर्व प्रकृति और आस्था का महापर्व है
रिपोर्ट:रांची डेस्क
छठ महापर्व सूर्य देव की पूजा और उनके प्रति कृतज्ञता व्यक्त करने के लिए मनाया जाता है। इस पर्व में लोग सूर्य देव और छठी मैया की पूजा करते हैं। माना जाता है कि छठ पूजा का व्रत रखने से सूर्य देव की कृपा प्राप्त होती है और छठी माता जीवन की सभी बाधाओं को दूर करती हैं। यह पर्व प्रकृति और आस्था का संगम है, जो वर्ष में दो बार मनाया जाता है, मुख्य रूप से कार्तिक महीने के शुक्ल पक्ष की षष्ठी को बड़े उत्साह से मनाया जाता है।
छठ पूजा का शुरुआत
छठ पूजा की शुरुआत नहाय-खाय से होती है और चार दिनों तक चलती है। इस दौरान व्रती स्नान, उपवास और सूर्य को अर्घ्य देते हैं। इसे सूर्य षष्ठी व्रत भी कहा जाता है, जो परिवार की सुख-शांति और समृद्धि के लिए किया जाता है।
इस पूजा की शुरुआत के बारे में कई पौराणिक कथाएं हैं। सबसे प्रसिद्ध कथा के अनुसार छठ पूजा सबसे पहले माता सीता ने की थी, जब वे अपने 14 वर्ष के वनवास के बाद सूर्य देव को अर्घ्य देने सरयू नदी के तट पर बैठीं। इसके अलावा महाभारत के समय सूर्यपुत्र कर्ण द्वारा सूर्यदेव की पूजा और पांडवों की पत्नी द्रौपदी द्वारा भी छठ व्रत रखने की कथाएं प्रचलित हैं। राजा प्रियवंद नामक राजा ने भी संतान प्रार्थना के लिए छठ पूजा की शुरुआत मानी जाती है।
छठ पूजा 2025 में 25 अक्टूबर से शुरू होकर 28 अक्टूबर तक चलेगी। इसे बिहार, झारखंड, उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल और नेपाल में बड़े उत्साह से मनाया जाता है।
छठ पूजा का महत्व और कारण

छठ पूजा प्रकृति का आदर और साक्षात्कार कराने वाला पर्व है, जिसमें सूर्य देव को समर्पित श्रद्धा होती है।
यह पर्व लोक आस्था का महापर्व है जिसमें जाति, धर्म, गरीबी-धनी के भेद समाप्त कर सभी श्रद्धा से जुड़ते हैं।
पूजा की सामग्री जैसे फल, शकरकंद, केला आदि सब प्राकृतिक होते हैं, जो प्रकृति की महत्ता का प्रतीक है।
छठ पूजा कब और कैसे मनाई जाती है?
यह पर्व कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष में मनाया जाता है।
चार दिनों तक चलता है, जिनमें नहाय-खाय, खरना, संध्या अर्घ्य और उषा अर्घ्य के रूप में पूजा होती है।
व्रती निर्जला व्रत रखते हैं और उगते एवं डूबते सूर्य को अर्घ्य देते हैं।
यह छठ महापर्व आस्था, प्रकृति और परिवार की समृद्धि का त्योहार है, जिसे बड़ी श्रद्धा और मान्यता के साथ मनाया जाता है।
