22 सितम्बर से शुरू हो रहे शारदीय नवरात्र को लेकर मां भद्रकाली मंदिर के पूजारी और ज्योतिषाचार्य संदीप शर्मा ने विस्तार से शुभ संयोग, फल और सावधानियों की जानकारी दी है।
रिपोर्ट:-रांची डेस्क••••••
नवरात्र का आरंभ और महत्व
22 सितंबर, सोमवार से शारदीय नवरात्र प्रारंभ हो रहा है और इसका समापन 2 अक्टूबर, गुरुवार को विजयदशमी पर होगा। इन नौ दिनों में मां दुर्गा के विभिन्न स्वरूपों की पूजा-अर्चना की जाएगी।
श्रीदुर्गा सप्तशती और देवी भागवत महापुराण के अनुसार, नवरात्र में माता रानी की भक्ति करने से मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं और साधक को हर प्रकार से कल्याणकारी फल प्राप्त होते हैं। आश्विन प्रतिपदा से शुरू होकर दशमी तिथि को समाप्त होने वाला यह पर्व शक्ति उपासना और साधना का सर्वोत्तम काल माना गया है।
देवी के आगमन और प्रस्थान का फल
गज पर आगमन (हाथी पर आगमन) इस बार नवरात्रि का आरंभ सोमवार से हो रहा है। परंपरा के अनुसार, जब भी नवरात्रि रविवार या सोमवार से शुरू होती है, तो माता का आगमन गज यानी हाथी पर होता है। इसे अत्यंत शुभ माना गया है।
वर्षा प्रचुर मात्रा में होगी।
जब भी माता का आगमन हाथी पर होता है तो उसे वर्ष कृषि में वृद्धि और अन्न-धान्य की भरपूर उपलब्धि होती हैं। देश और समाज में धन-समृद्धि और खुशहाली का संचार होगा।
मनुष्य पर गमन (मनुष्य की सवारी पर प्रस्थान):
जब भी। माता का प्रस्थान गुरुवार के दिन होता है तो दुर्गा माता मनुष्य की सवारी करके प्रस्थान करती है इस वर्ष 2 अक्टूबर, गुरुवार को विजयदशमी होगी। इस दिन मां दुर्गा मनुष्य की सवारी करके प्रस्थान करेंगी। इसका अर्थ है कि समाज में आपसी प्रेम और एकता बढ़ेगी। लोगों के बीच सुख-शांति और सौहार्द का वातावरण बनेगा।
आस्था और पाठ का महत्व
ज्योतिषाचार्य संदीप शर्मा बताते हैं कि नवरात्र के दौरान हर भक्त को दुर्गा पाठ अवश्य करना चाहिए। यदि घर पर पाठ संभव न हो, तो किसी ब्राह्मण से करवाएं या सार्वजनिक दुर्गा पंडाल अथवा देवी मंदिर में अखंड दीप प्रज्वलित करें।कम से कम सन्ध्या बेला में प्रतिदिन मां के मंदिर में दीप अर्पित करना चाहिए। ऐसा करने से जीवन की बाधाएं दूर होती हैं, रोग-शोक का नाश होता है और माता रानी हर प्रकार से रक्षा करती हैं।
नौ दिनों के व्रत में ध्यान रखने योग्य बातें
व्रत को बीच में कभी न तोड़ें। दिन में सोने से बचें। व्रत के दौरान दाढ़ी, बाल और नाखून काटने से परहेज करें। किसी का अपमान न करें, विशेषकर माता-पिता, गुरु, ब्राह्मण और स्त्री का। मन में बुरे विचार, ईर्ष्या या द्वेष न लाएं। व्रत और पूजा के समय पवित्र आचरण, विनम्रता और आत्मसंयम का पालन करें।
