
ऐतिहासिक ऊंचाई छू रहा है सोना चांदी
रिपोर्ट:-रांची डेस्क••••••
क्यों महंगा हो गया सोना और चांदी
हाल के दिनों में सोना और चांदी दोनों के दाम ऐतिहासिक ऊंचाई छूकर चर्चा में रहे हैं। वैश्विक आर्थिक अनिश्चितता, अमेरिकी वित्तीय नीति की उम्मीदें, और घरेलू मांग—इन मुख्य वजहों के चलते दोनों धातुएं महंगी हुईं।
अमेरिका और यूरोप की आर्थिक अनिश्चितता, डॉलर की कमजोरी, और फेडरल रिजर्व की ब्याज दर नीति को लेकर निवेशक सुरक्षित निवेश (Safe Haven) के रूप में सोने-चांदी की ओर बढ़ रहे हैं।
भारत में शादी, त्योहारों और हॉलमार्किंग जैसे नए नियमों के कारण घरेलू मांग भी बढ़ गई है।
आर्थिक जानकारों के मुताबिक कमजोर निवेश मांग और वैश्विक स्तर पर अस्थिर बाजार का असर सोने की कीमतों के रिकॉर्ड स्तर पर दिख रहा है।
क्या रिकॉर्ड टूटा
4 सितंबर को 24 कैरेट सोना रिकॉर्ड 1,07,070 रुपये प्रति 10 ग्राम तक पहुंच गया था, जो अब मामूली गिरावट के साथ 1,05,945 तक आ गया है। चांदी भी ₹1,26,100 प्रति किलो के उच्चतम स्तर पर रही
बीते 12 महीनों में सोने और चांदी दोनों ने कई बार अपना पिछला रिकॉर्ड पार किया है।
शेयर बाजार पर असर
सोने-चांदी की ऊंची कीमतों के चलते निवेशकों का पैसा शेयर बाजार से निकलकर सेफ इंस्ट्रूमेंट्स की तरफ जा रहा है, जिससे शेयर मार्केट में उतार-चढ़ाव और मुनाफावसूली की स्थिति बनती है जब ग्लोबल मार्केट में अस्थिरता रहती है, निवेशक जोखिम से बचने के लिए सोने की खरीद बढ़ा देते हैं।
आर्थिक प्रक्रिया पर असर
सोने-चांदी की ऐतिहासिक महंगाई से आयात बिल बढ़ता है, जिससे भारत का करंट अकाउंट घाटा बढ़ सकता है।घरेलू बाजार में महंगाई (Inflation), उपभोक्ताओं के खर्च, और ज्वैलरी सेक्टर पर भी असर पड़ता है कीमतें बढ़ने से सामान्य खरीद घट जाती है और व्यापार प्रभावित होता है।अंतरराष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य में डॉलर की कमजोरी, वैश्विक मंदी की आंशका और आर्थिक तनाव बढ़ने पर सोना निवेश का प्रमुख विकल्प बन जाता है, जिससे बाजार में उसकी डिमांड बढ़ती है।
जानकारों के मुताबिक, फेड की आगामी नीति, चीन और यूरोप की आर्थिक स्थिति और भारत में शादी एवं त्योहार सीजन की मांग सोने-चांदी को महंगा बनाए हुए है। भारतीय रुपये को भी दबाव का सामना करना पड़ रहा है, जिससे आयात महंगा होता है। वही कुल मिलाकर, महंगे सोना-चांदी से ज्वैलरी कारोबार, आयात बिल और दैनिक उपभोक्ताओं के बजट पर सीधा असर पड़ रहा है। विशेषज्ञों का मानना है कि आगे भी वैश्विक हालात और अमेरिकी नीति के फैसलों के मुताबिक इन धातुओं की कीमतों में भारी उतार-चढ़ाव जारी रह सकता है।