नीरज सिंह हत्याकांड पर अदालत का फैसला
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नीरज सिंह हत्याकांड पर अदालत का फैसला

 

रिपोर्ट:-रांची डेस्क••••••

 

धनबाद के बहुचर्चित डिप्टी मेयर नीरज सिंह हत्याकांड की गिनती झारखंड की सबसे हाई-प्रोफाइल वारदातों में होती है।

* 2017 में हुई थी हत्या

नीरज सिंह की हत्या 2017 में 21 मार्च को शाम 7:00 बजे वह अपने घर रघुकुल आवास के लिए लौट रहे थे, उस वक्त वह अपने फॉर्च्यूनर गाड़ी पर ड्राइवर के साथ अगले सीट पर बैठे हुए थे तभी स्पीड ब्रेकर के पास जैसे ही गाड़ी स्लो हुई दो बाइक पर चार हमलावर आए आए और ताबड़तोड़ गोलियां बरसाई इसी दौरान गाड़ी में बैठे चार लोगों की मौके पर ही मौत हो गई, जिसमें नीरज सिंह की भी मौत हो गई थी, उसे वक्त 37 गवाह के बयानों पर यह केस दर्ज हुआ था, जिसके बाद संजीव सिंह सहित कई नामचीन लोगों को आरोपी बनाया गया।

* पूर्णिमा नीरज सिंह का बयान

 

जो भूल गए उन्हें याद दिला दु चार लोगों की हत्या हुई थी तीन महिलाएं एक साथ विधवा हुई चार मांओ ने एक पल में अपना बेटा खो दिया चार परिवार उजड़ गए अपने ही परिवार के सदस्य की हत्या हुई कुलघात हुआ अगर ऐसा करने वालों के लिए समाज का एक पक्ष छाती पीट कर खुशियां मान रहा है तो हमें अपनी अंतरात्मा में झांककर देखने की जरूरत है

कलह अदालत कि फैसला आने के बाद इस बयान को साझा की पूर्णिमा ने यह जताई कि नीरज सिंह हत्याकांड में चार लोग कि जान गया था जिसमें तीन महिला विधवा हई थी चार परिवार टूट गया हड़तालिका व्रत तीज के दिन यह फोटो अपने फेसबुक के जरिए भी अपने पति कि याद में साझा की

* 27 अगस्त बुधवार को सभी आरोपियों को बरी किया गया

धनबाद की अदालत ने इस केस में सुनवाई पूरी करने के बाद सबूतों के अभाव में सभी आरोपियों को बरी कर दिया। न्यायालय ने कहा कि अभियोजन पक्ष पुख्ता सबूत पेश करने में नाकाम रहा।

* रागिनी सिंह का बयान 

फैसले के बाद विधायक रागिनी सिंह ने कहा कि उनके पति को बिना कसूर आठ साल जेल में रखा गया, जो उनके परिवार के लिए एक तरह का बनवास साबित हुआ। उन्होंने यह भी सवाल उठाया कि यदि जांच में खामियां थीं, तो उस समय की सरकार ने गहन जांच क्यों नहीं कराई थी

* समर्थकों का राहत

अदालत का यह फैसला संजीव सिंह और उनके समर्थकों के लिए बड़ी राहत है। वही

नीरज सिंह के समर्थक वर्ग में असंतोष और नाराजगी भी बढ़ सकती है।

राजनीतिज्ञों के लिए यह मामला अब दो धड़ों के बीच राजनीतिक वर्चस्व की लड़ाई में अहम भूमिका निभा सकता है।

इससे झारखंड की राजनीति में एक बार फिर “सिंह बनाम सिंह” की प्रतिस्पर्धा चर्चा में आ सकती है

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