 
			अमीरों की जीवनशैली बढ़ा रही जलवायु संकट, गरीब झेल रहे इसकी मार
रिपोर्ट:रांची डेस्क
पेरिस स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स और ऑक्सफैम की रिपोर्ट ने किया खुलासा; कॉप-30 से पहले गंभीर चेतावनी
ब्रासीलिया/पेरिस, में नवंबर 2025 में होने जा रहे संयुक्त राष्ट्र के कॉप-30 जलवायु सम्मेलन से पहले जारी दो अहम अंतरराष्ट्रीय रिपोर्टों—पेरिस स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स की ‘क्लाइमेट इनइक्वेलिटी रिपोर्ट 2025’ और ऑक्सफैम की ताजा रिपोर्ट—ने जलवायु असमानता की गहराई को उजागर किया है। दोनों रिपोर्टों में दावा किया गया है कि मौजूदा वैश्विक जलवायु संकट के लिए सबसे अमीर तबका गरीबों की तुलना में सैकड़ों गुना अधिक जिम्मेदार है।
रिपोर्टों के मुताबिक, दुनिया के सर्वाधिक अमीर 1 प्रतिशत लोगों की जीवनशैली और उनकी निवेशगत गतिविधियाँ विश्व के कुल उपभोग-आधारित उत्सर्जन का लगभग 15 प्रतिशत पैदा करती हैं। वहीं, इन्हीं अमीरों के कारण कार्बन उत्सर्जन में गरीबों की अपेक्षा 680 गुना तक बढ़ोतरी दर्ज की गई है। इस असमानता ने जलवायु परिवर्तन के बोझ को गरीब समुदायों पर असमान रूप से डाल दिया है।
गहराता जलवायु संकट
विशेषज्ञों के अनुसार, अमीर वर्ग न केवल अपनी अत्यधिक खपत से पर्यावरणीय क्षति का कारण बन रहा है, बल्कि उनके निवेश और पूंजीगत संपत्तियाँ भी उच्च-कार्बन परियोजनाओं में लगी हुई हैं, जिससे जलवायु संकट और गहराता जा रहा है। इससे एक ओर जहाँ वैश्विक तापमान बढ़ रहा है, वहीं दूसरी ओर विकासशील देशों की अर्थव्यवस्थाएँ जलवायु आपदाओं की चपेट में आ रही हैं।
रिपोर्ट में यह भी चेतावनी दी गई है कि अगर यह प्रवृत्ति इसी तरह बनी रही, तो वर्ष 2050 तक वैश्विक कुल संपत्ति में शीर्ष एक प्रतिशत अमीरों का हिस्सा 38.5 प्रतिशत से बढ़कर 46 प्रतिशत तक पहुंच जाएगा। इससे न केवल आर्थिक असमानता बल्कि पर्यावरणीय संकट भी चरम पर होगा।
30 सम्मेलन को लेकर उम्मीदे बढी
ऑक्सफैम ने अपनी रिपोर्ट में सुझाव दिया है कि कॉप-30 सम्मेलन में देश विशेष रूप से इस विषय पर ठोस कदम उठाएं जिसमें कार्बन-कर व्यवस्था, हाई-इनकम इन्वेस्टमेंट रिफॉर्म, और हरित निवेश को बाध्यकारी स्वरूप देने की अनुशंसा शामिल है।
ब्राजील में आगामी कॉप-30 सम्मेलन को लेकर विशेषज्ञों की उम्मीदें बढ़ी हैं कि इस बार जलवायु असमानता और जिम्मेदारी के वितरण पर ठोस नीति-निर्माण हो सकेगा। जलवायु वैज्ञानिकों का कहना है कि अगर अमीर देश अपने उत्सर्जन लक्ष्यों में कटौती और हरित वित्त में ईमानदारी से योगदान नहीं करते, तो ग्लोबल वार्मिंग पर नियंत्रण असंभव हो जाएगा।

 
			 
			