रांची का दुर्गा पूजा पंडाल बना विवाद का केंद्र इटली के चर्च के प्रारूप में सजा पंडाल, उठे राजनीतिक सवाल
रिपोर्ट:-रांची डेस्क••••••
रांची। राजधानी रांची का दुर्गा पूजा इस बार अलग ही रूप-रेखा को लेकर सुर्खियों में है। रातु रोड स्थित आर.आर. स्पोर्टिंग क्लब के दुर्गा पूजा पंडाल को आयोजकों ने इटली के चर्च की संरचना पर आधारित डिजाइन में तैयार किया है। पंडाल में चर्च की भव्य कारीगरी के साथ-साथ माता मरियम और ईसा मसीह से जुड़े चित्र भी लगाए गए हैं। जैसे ही इसकी तस्वीरें सामने आईं, श्रद्धालुओं के बीच विरोध की आवाज उठने लगी और मामला धीरे-धीरे राजनीतिक रंग लेने लगा।
श्रद्धालुओं ने जताई नाराजगी
पंडाल को चर्च जैसी आकृति में सजाए जाने पर कुछ श्रद्धालुओं ने इसे नवरात्र की आस्था के विपरीत बताते हुए निंदा की। उनका कहना है कि जहां नौ दिनों तक मां दुर्गा की पूजा-अर्चना की जाती है, वहां किसी अन्य धर्म की प्रतीकात्मकता जोड़ना अनुचित है।
आयोजकों का पक्ष
पूजा पंडाल समिति के अध्यक्ष बिक्की यादव ने इस पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा, हम भारत में रहते हैं जहां सभी धर्मों का सम्मान करना हमारा कर्तव्य है। यदि पूजा पंडाल को चर्च के रूप में बनाया गया है तो इसमें आपत्ति की कोई बात नहीं होनी चाहिए। कला का कोई धर्म नहीं होता और हमारे लिए सभी धर्म समान हैं।
भाजपा ने किया विरोध 
प्रदेश भाजपा ने इस पूरी व्यवस्था का कड़ा विरोध किया है। पार्टी प्रवक्ता शिव पूजन ने कहा कि नवरात्र जैसे पावन पर्व पर ऐसे प्रयोग भक्तों की भावनाओं को ठेस पहुंचाते हैं। उन्होंने दावा किया कि पंडाल समिति अध्यक्ष बिक्की यादव का संबंध राजद से है और यह कदम कहीं न कहीं धर्म की राजनीति से प्रेरित दिखाई देता है। भाजपा ने आयोजकों से पंडाल की संरचना बदलने की मांग की है।
कांग्रेस ने भाजपा पर कसा तंज
दूसरी ओर, कांग्रेस ने भाजपा के आरोपों को पूरी तरह खारिज कर दिया। प्रदेश कांग्रेस नेताओं ने कहा कि हर वर्ष रांची के पंडाल विभिन्न मंदिरों, महलों और ऐतिहासिक धरोहरों की आकृति में तैयार किए जाते हैं। यह केवल कला की अभिव्यक्ति है, धर्म से इसका कोई लेना-देना नहीं है। कांग्रेस ने भाजपा पर निशाना साधते हुए कहा कि भाजपा के पास अब कोई ठोस मुद्दा नहीं बचा है, इसलिए वह इस तरह की बातें उठाकर राजनीति कर रही है। जनता पूजा पंडाल के डिजाइन देखकर वोट नहीं करती, बल्कि काम देखकर करती है।
माहौल में गरमाहट
मामला अब सोशल मीडिया से लेकर राजनीतिक मंचों तक चर्चा का विषय बन चुका है। कई लोग इसे धर्म और कला के बीच का विवाद मान रहे हैं, तो कुछ इसे सीधे भक्ति भावनाओं की अवहेलना बता रहे हैं।
