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सावन में मांसाहार क्यों नहीं खाना चाहिए?

रिपोर्ट:- राँची डेस्क..

सावन में मांसाहार क्यों नहीं खाना चाहिए?

सावन का महीना, जो कि भगवान शिव को समर्पित है, भारत में बहुत ही पवित्र माना जाता है। इस दौरान भक्तजन शिव भक्ति में लीन रहते हैं और कई नियमों का पालन करते हैं, जिनमें मांसाहार से परहेज़ भी एक प्रमुख नियम है।


धार्मिक और आध्यात्मिक कारण..

भगवान शिव का पवित्र महीना, सावन मास भगवान शिव को अत्यंत प्रिय है। ऐसी मान्यता है कि इस महीने में भगवान शिव धरती पर आते हैं और अपने भक्तों की मनोकामनाएं पूरी करते हैं। इस पवित्र अवधि में लोग व्रत रखते हैं, रुद्राभिषेक करते हैं, और सात्विक जीवन शैली अपनाते हैं। मांसाहार को तामसिक भोजन की श्रेणी में रखा जाता है, जो अध्यात्म और पूजा-पाठ के लिए उपयुक्त नहीं माना जाता। तामसिक भोजन मन में क्रोध, वासना और आलस्य जैसे भाव पैदा करता है, जो आध्यात्मिक उन्नति में बाधक होते हैं।


पवित्रता और शुद्धि..
धार्मिक ग्रंथों और परंपराओं के अनुसार, सावन के महीने में शरीर और मन दोनों की शुद्धि पर विशेष जोर दिया जाता है। मांसाहार का सेवन शरीर को “अपवित्र” कर सकता है और मन में नकारात्मक विचार ला सकता है। इस दौरान सात्विक भोजन (जैसे फल, सब्जियां, दूध, अनाज) करने से मन शांत रहता है और सकारात्मक ऊर्जा बढ़ती है, जो ध्यान और पूजा के लिए सहायक है।


अहिंसा और जीव हत्या से परहेज..
हिंदू धर्म में अहिंसा परमो धर्मः (अहिंसा ही सबसे बड़ा धर्म है) के सिद्धांत को बहुत महत्व दिया गया है। सावन जैसे पवित्र महीने में किसी भी जीव की हत्या करना या उसका मांस खाना घोर पाप माना जाता है। यह प्रकृति के प्रति सम्मान और सभी जीवों के प्रति दया भाव रखने की सीख देता है। ऐसी मान्यता है कि जीव हत्या से प्राप्त भोजन खाने से कर्मों पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है।

वैज्ञानिक और स्वास्थ्य संबंधी कारण..
पाचन तंत्र पर प्रभाव (वर्षा ऋतु): सावन का महीना आमतौर पर वर्षा ऋतु में आता है। इस दौरान वातावरण में नमी बहुत अधिक होती है, जिससे हमारा पाचन तंत्र अपेक्षाकृत कमजोर हो जाता है। आयुर्वेद के अनुसार, इस मौसम में शरीर की अग्नि मंद पड़ जाती है, जिससे भारी और गरिष्ठ भोजन पचाना मुश्किल हो जाता है। मांसाहार प्रोटीन और वसा से भरपूर होता है, जिसे पचाने में शरीर को अधिक ऊर्जा लगानी पड़ती है। इससे अपच, गैस, पेट फूलना, और दस्त जैसी समस्याएं हो सकती हैं। हल्का और सुपाच्य भोजन (जैसे दाल, चावल, सब्जियां) इस मौसम के लिए बेहतर माना जाता है।

संक्रमण और बीमारियों का खतरा..
बारिश के मौसम में बैक्टीरिया, वायरस और अन्य सूक्ष्मजीव बहुत तेज़ी से पनपते हैं। नमी और गर्म वातावरण उनके प्रजनन के लिए अनुकूल होता है। ऐसे में मांसाहारी भोजन, विशेषकर मछली, समुद्री भोजन (सी-फूड), और अन्य मांस, जल्दी खराब हो सकते हैं। इनके सेवन से खाद्य जनित बीमारियों , टाइफाइड, पीलिया और पेट के संक्रमण का खतरा कई गुनाबढ़ जाता है। जानवरों में भी इस मौसम में बीमारियाँ फैलने की संभावना अधिक होती है, जिसका मांस खाने से इंसानों में भी संक्रमण फैल सकता है।

शरीर का डिटॉक्सिफिकेशन..
कई लोग सावन में उपवास रखते हैं या केवल एक बार भोजन करते हैं। यह एक प्राकृतिक तरीके से शरीर को डिटॉक्सिफाई (विषमुक्त) करने में मदद करता है। मांसाहार शरीर में विषाक्त पदार्थों को बढ़ा सकता है, जबकि शाकाहारी और हल्का भोजन शरीर को शुद्ध करने में सहायक होता है।

सामाजिक और पारंपरिक कारण..
सदियों पुरानी परंपरा, भारत में सावन के दौरान मांसाहार का त्याग करना एक सदियों पुरानी परंपरा और मान्यता है। लोग पीढ़ियों से इस नियम का पालन करते आ रहे हैं। यह केवल धार्मिक आस्था ही नहीं, बल्कि सांस्कृतिक पहचान का भी हिस्सा है।

सामुदायिक भावना..
सावन में कई लोग एक साथ मिलकर व्रत रखते हैं और धार्मिक अनुष्ठानों में भाग लेते हैं। इस दौरान मांसाहार का त्याग एक सामुदायिक पवित्रता और एकजुटता की भावना को दर्शाता है। यह एक सामाजिक सामंजस्य स्थापित करता है, जहाँ सभी एक ही नियम का पालन करके एक विशेष पवित्र माहौल का हिस्सा बनते हैं।

पर्यावरण और पशु कल्याण के प्रति भी जागरूकता..
पर्यावरण और पशु कल्याण अप्रत्यक्ष रूप से, यह परंपरा पर्यावरण और पशु कल्याण के प्रति भी जागरूकता बढ़ाती है। इस एक महीने के लिए मांस उद्योग पर कुछ हद तक दबाव कम होता है, और यह लोगों को शाकाहारी भोजन के विकल्पों के बारे में सोचने पर मजबूर करता है।
संक्षेप में, सावन में मांसाहार का सेवन न करना केवल एक धार्मिक नियम नहीं है, बल्कि यह स्वास्थ्य, पर्यावरण और सामाजिक सद्भाव से जुड़ा एक गहरा और वैज्ञानिक दृष्टिकोण भी है। यह हमें प्रकृति के साथ तालमेल बिठाने और एक संतुलित जीवन शैली अपनाने की प्रेरणा देता है।

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